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कुछ/चंद रोज़ और बचे हुए थे पतझड़ को जाने में, मगर.

कुछ/चंद रोज़ और बचे हुए थे पतझड़ को जाने में, मगर...

तेरी कोकिल छवि देखकर बंजर चित्त में भी बुहार आ गई...।।

©Lokendra Roy
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