दरवाज़ा मेरे हमदम मेरे दिल का दरवाज़ा खुला है, तुम चली आओं । मेरी बेसब्र आंखें देखती है तुम्हारा रास्ता, तुम चली आओं । तुम्हारी याद में ना जाने कितने ही सावन बीत गए, अब ये आंखें भी नम है, तुम चली आओं । और इसमें मेरा क्या कसूर है तुम जरा बतलाओ, ये तो तुम्हारे हुस्न का जलवा है जो मैं तुम्हारा दीवाना हुआ, अब अपने आशिक को ना इतना तड़पाओ, तुम चली जाओ । है तुझको हमारी सच्ची मोहब्बत की कसम ना मुझ पर इतना सितम ढाओं, मेरे हमदम मेरे दिल का दरवाज़ा खुला है, तुम चली आओ । ©Anit kumar #WForWriter