'जागो ग्राहक जागो' (आवृत्त) परिप्रेक्ष्य भाग्य का निर्जीव पड़ा है अति से निर्धारित,समग्रता अजीव खड़ा है सम्वर्धन भाग्य-कोष का अलौकिक भरा है लौकिकता से परे यह अभौतिक घड़ा है हार या जीत से अनुप्राणित मौकापरस्त बड़ा है आवृत्त भाग्य में चैतन्य पूर्ण मरा है भाग्य में अन्तर्भेद नही कोई जड़ा है मानव का उद्र्ग्रीव योग्यता से विच्छिन कभी नही मन हरा है । विप्रणु ✒️ #आवृत