जाने क्यूं सब पाकर भी, कुछ खो दिया है, कुछ रिश्तों से उलझकर, कुछ अजनबियों को खो दिया है, एक खूबसूरत सुबह को, एक शाम के लिए खो दिया है, दो वक्त की चाह को, एक सुकून खो दिया है, मिट्टी से उठकर अब, मिट्टी को खो दिया है, वक़्त को पकड़ने की चाह में, मैने अरसों को खो दिया है, ख्वाबों पर बैठकर अब, हकीकत को खो दिया है, जाने क्यों अब पाकर भी, कुछ खो दिया है।। #ek#arsa#khud#ko#dundhne