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धरती चीख पुकार रही है, अंदर से हुंकार रही है अपनी

धरती चीख पुकार रही है, अंदर से हुंकार रही है 
अपनी ज्वाला में जल जलकर 
खुद को पल पल मार रही है 
अंदर से हुंकार रही है!

कैसा बेटा है तू, क्या फ़र्ज़ निभाया है तूने
धरती माँ की क़ुरबानी का, क्या क़र्ज़ चुकाया है तूने
इन सब ज़ुल्मो क बाद भी तुझको बेटे सा मान रही है
अंदर से हुंकार रही है! 

अब मान मेरी दे मुक्ति इसे, क्यों पल पल यूँ तड़पाता है
क्यों उसको उसकी मृत्यु के इतना करीब ले जाता है 
आंसू बिन आंखें भीगी कर 
अब खुद से माफ़ी मांग रही 
अंदर से हुंकार रही है!
धरती चीख पुकार रही है, अंदर से हुंकार रही है 
अपनी ज्वाला में जल जलकर 
खुद को पल पल मार रही है 
अंदर से हुंकार रही है!

कैसा बेटा है तू, क्या फ़र्ज़ निभाया है तूने
धरती माँ की क़ुरबानी का, क्या क़र्ज़ चुकाया है तूने
इन सब ज़ुल्मो क बाद भी तुझको बेटे सा मान रही है
अंदर से हुंकार रही है! 

अब मान मेरी दे मुक्ति इसे, क्यों पल पल यूँ तड़पाता है
क्यों उसको उसकी मृत्यु के इतना करीब ले जाता है 
आंसू बिन आंखें भीगी कर 
अब खुद से माफ़ी मांग रही 
अंदर से हुंकार रही है!
akvaibhav2382

Ak.vaibhav

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