*** ग़ज़ल *** *** कुछ बात *** " इतना तो इत्मीनान कर लेने दे , ज़िक्र तेरा आज भी कुछ कर लेने दे , होती नहीं मुलाकातें दिलचस्प तो क्या , तसब्बुर के ख़्यालो की नुमाइश कर लेने दे , फिर कहीं तु मिल ना मिल कहीं ऐसे में , कहीं गुमनामी मे कहीं तेरा नाम ले लेने दे , फ़ुर्सत में नहीं कहीं तु भी मुझे याद कर लें , बगैर बातों के भी कुछ बात कर लें , कोई कश्क आज भी हैं मेरे क़फ़स में ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** कुछ बात *** " इतना तो इत्मीनान कर लेने दे , ज़िक्र तेरा आज भी कुछ कर लेने दे , होती नहीं मुलाकातें दिलचस्प तो क्या , तसब्बुर के ख़्यालो की नुमाइश कर लेने दे , फिर कहीं तु मिल ना मिल कहीं ऐसे में ,