रूपवंत होये नाही मोहय प्रभ की जोत सगल घट सोहै।। अर्थ:- किसीके शरीर की बनावट व मुखड़ा कितना भी सुंदर व करूप भी क्यों न हो पर परमात्मा को वह नहीं शोभता यानी शरीरिक रूप नहीं भाता बल्कि जो नेत्रों में परमात्मा ने अपनी जोत रखी है वह जरूर परमात्मा को भाती है जो गुर ले कर नाम धयाति है और जो सभी घटो में यानी शरीरों में एक जोत विद्यमान है।। ©Biikrmjet Sing #जोत